कृषि प्रधान देश में बैल विहीन गाँव

स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा, समाज में फैल रही असमानता और ख़त्म होते संवाद को दूर करने में होगी सहायक
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प्रकृति में सृजन का मूल है बीज और इसी बीज से जीवन और भोजन दोनों की उत्पत्ति होती है
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गाँधी के सपनों के देश जिसकी आत्मा गाँव में बस्ती थी वह गाँव आज बैल विहीन हो गए हैं. कृषि प्रधान देश में आज गाँव में पशु ही नहीं बचे हैं. स्वराज सन्देश संवाद पदयात्रा के दौरान आयोजित स्वराज संवाद कार्यक्रम में ये हैरान करने वाले तथ्य उजागर हुए. कार्यालय ग्राम पंचायत, रहड में चर्चा के दौरान ग्रामवासियों ने ये बात कही.

महात्मा गाँधी और विनोबा जी के स्वराज संदेशों को आदिवासी अनुभवों के साथ व्यापक स्तर पर विभिन्न तबकों में ख़त्म होते संवाद की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से आयोजित स्वराज सन्देश संवाद पदयात्रा बाँसवाड़ा से चल कर अभी तक लगभग ३५० किलोमीटर का सफ़र तय कर चुकी है और व्यापक जन समर्थन व जन जुडाव के साथ धीरे-धीरे जयपुर की ओर बढ़ रही है.

लगभग १२५ लोगों के साथ इस यात्रा के माध्यम से प्रकृति के घटकों जल, जंगल, ज़मीन, पशु, और बीज के स्वराज जैसे जीवन के महत्वपूरण विषयों पर संवाद द्वारा चर्चा कर स्थानीय मुद्दों, समस्याओं तथा स्थानीय तरीकों से उनके समाधान खोजने तथा उन्हें जन समुदाय के समक्ष रखने, उन्हें व्यवहार में लाने हेतु विचारों का आदान-प्रदान करने के मकसद से चल रही इस यात्रा में आज की स्वराज संवाद चर्चा में रहड ग्राम पंचायत कार्यालय पर ग्रामवासियों ने बदलते कृषि परिवेश तथा उसके कारण उत्पन्न होती विकट परिस्थितियों पर अपने दिल के उदगार व्यक्त किये।

बचखेडा, रघुनाथपुरा, माताजी का गडा, जैसे लगभग ६ से ७ गाँव में चर्चा के पश्चात आज रहड में भी स्वराज संवाद कार्यक्रम के सिलसिले को जारी रखते हुए चर्चा हुई. वाग्धारा के परमेश पाटीदार ने सभी को इस यात्रा के उद्देश्य से अवगत कराते हुए अपनी पारंपरिक कृषि पद्यतियों के बारे में जानकारी दी. संस्था के ही माजिद खान और सोहन नाथ जोगी ने संवाद की शुरुआत करते हुए गाँव में कृषि, बीज पशुधन और शिक्षा की स्थिति पर चर्चा की। चर्चा में भाग लेते हुए रहद के पूर्व सरपंच राम स्वरुप जी ने कहा कि जो कुछ भी पहले खेतों में उगता था वो अब बाहर से आने लगा है चाहे वो दूध हो या सब्जी या फल. हमारे यहाँ ये हो सकता है ये हमने सोचने ही छोड़ दिया है. खाद बीज खाना सब कुछ बाहर से ही आता है. एक आश्चर्यजनक सत्य जान कर सभी हैरान थे कि पूरी पंचायत में मात्र १ बैलों की जोड़ी है जबकि वर्षों पहले हर घर में १-२ बैलों के जोड़ी हुआ करती थी. आज का युवा कृषि की पद्यतियों से अनजान है और उसकी खेती में रूचि नहीं रह गयी है. इसका एक कारण है कि खेती की बातें अब घर में ही कोई नहीं करता.

वाग्धारा संस्था के जयेश जोशी ने कहा कि इसी संवाद को पुनर्स्थापित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है. हमें शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी. हम सब कुछ सरकार के भरोसे पर छोड़ चुके हैं और यही हमारी इस दुर्दशा का कारण है. जिस प्रकार घर की समस्या का समाधान घर में अपने तरीकों से खोजा जाता है वैसे ही गाँव की समस्याओं का समाधान ग्राम स्तर पर ढूंढना हमारी ज़िम्मेदारी है। आज़ादी के बाद सभी को यह लग्न लगा कि अब सारे काम – काज सरकार करेगी जो कि गाँधी जी की स्वराज संकल्पना के अनुरूप नहीं है। यदि कार्य हमारा है तो उसकी ज़िम्मेदारी भी हमारी है और हमारा ये हक भी है कि हम अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल भी करें।

उन्होंने कहा कि बदलाव की शुरुआत स्वयं से ही होती है. अतः हमारी ये ज़िम्मेदारी है कि हम अपने गाँव की समस्याएँ ग्राम स्तर पर सुलझाने के लिए एक साथ मिल कर कोशिश करें. 

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Aaqib Ahmad

IT Support & Development

Aaqib holds a Master of Computer Applications (MCA) from Jawaharlal Nehru Technological University, Hyderabad. With experience in data analysis, website development, and market research, he transitioned to the development sector seeking purpose-driven work and new challenges.
Working at Vaagdhara has transformed not just my career but my outlook on life. I came here as an IT professional, but I have grown into someone who understands the pulse of rural and tribal communities.