प्रकृति में सृजन का मूल है बीज और इसी बीज से जीवन और भोजन दोनों की उत्पत्ति होती है

कृषि प्रधान देश में बैल विहीन गाँव
September 24, 2022
स्वराज का पौधा उसी देश में पनपता है जिसकी जड़ें अपनी परम्पराओं से जुडी हों
September 26, 2022
कृषि प्रधान देश में बैल विहीन गाँव
September 24, 2022
स्वराज का पौधा उसी देश में पनपता है जिसकी जड़ें अपनी परम्पराओं से जुडी हों
September 26, 2022

जब तक बीज को उसकी स्थानीय प्रकृति के अनुसार अन्य घटकों का साथ मिलता है तब फसल श्रेष्ठ होती है, परन्तु यदि इस बीज की मूल प्रवृत्ति में बदलाव किया जाये तो फसलें और नस्लें दोनों बिगड़ जाती है. बढ़ती जनसँख्या के लिए आवश्यक भोजन की व्यवस्था करने के लिए हरित क्रांति के उपायों पर चर्चा में विद्वानों और कृषि विशेषज्ञों ने जो चिन्ता ज़ाहिर की थी वो अब यथार्थ में देखने को मिल रही हैं. आज फसलें और नस्लें दोनों बर्बादी के कगार पर हैं – देसी बीज की जगह वहां की क्षेत्र अनुरूप उपयुक्त बीज नहीं मिलना, जैविक खाद की बजाय रासायनिक खाद व् कीटनाशक, स्थानीय भोजन के स्थान पर बाहर से लाया हुआ खाना और बाहर से आकर शिक्षा का व्यापार कर रहे लोग, ये कुछ ऐसे बदलाव हमारे जीवन में आये हैं जिसकी वजह से जहाँ एक ओर आज मनुष्य का मनुष्य से यहाँ तक कि प्रकृति के साथ भी उसका संवाद ख़त्म हो गया है.

संवाद की इसी टूटी कड़ी को जोड़ने और एक दुसरे के बीच संवाद को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से महात्मा गाँधी और विनोबा जी के स्वराज के संदेशों को अपने अनुभवों के साथ जन जन तक पहुँचाने हेतु प्रकृति के संरक्षक समुदाय “स्वराज सन्देश संवाद पदयात्रा” के माध्यम से प्रयास कर रहे हैं .

विनोबा जी की जयंती के दिन ११ सितम्बर को बाँसवाड़ा के जनजातीय स्वराज केंद्र से शुरू हुई ये पदयात्रा अब तक ४०० किलोमीटर का सफ़र तय करते हुए प्रतापगढ़, चित्तौडगढ, भीलवाड़ा से हो कर अजमेर के केकड़ी पहुँच चुकी है. १२५ पदयात्रियों के साथ गाँव-गाँव में स्वराज संवाद कार्यक्रम के द्वारा गाँधी जी के स्वराज संदेशों को उन तक पहुँचाते, अपने अनुभवों को साझा करते और स्थानीय तरीकों से अपनी समस्याओं को सुलझाने के उपाय सुझाते यह यात्रा जगह-जगह हो रहे स्वागत के बीच आज अजमेर के केकड़ी तहसील पहुंची. कादेड़ा, शेषपुरा, ख़वास, गोपालपुरा और भराई ग्राम में स्वराज संवाद कार्यक्रम में स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए स्थानीय तरीके खोजने, सरकार के भरोसे नहीं रह कर खुद की ज़िम्मेदारी को आत्मसात करते हुए वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने युवाओं का आव्हान करते हुए उन्हें आगे आकर अपनी बात कहने और पहल करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद हमने सब कुछ सरकारों के भरोसे पर छोड़ दिया है. हमने अपनी ज़िम्मेदारी से मूंह मोड़ लिया है.

यात्रा के मार्ग में ही परंपरागत खेती पद्धतियों का पालन कर रही और स्वराज के सिद्धांतों पर चलने वाली जीवंत उदाहरण के रूप में भराइ ग्राम की श्रीमती लाली बाई गुर्जर से मुलाकात हुई, उन्होंने साठी मक्का दिखाते हुए बताया कि बचपन से वे अपने घर में इस देसी मक्का के बीज सहेज कर रख रही हैं और उसी से खेती करते आ रही है. इस मक्का से उनकी घर की ज़रुरत भी पूरी हो जाती है और बाकी बची मक्का को वे बाज़ार में बेच कर अच्छे पैसे भी कमा लेती हैं. संस्था की ओर से लाली बाई का उपरना ओढा कर सम्मान किया गया.

जयेश जोशी ने वहां ग्राम वासियों को समझाते हुए कहा कि इसी प्रकार हमें अपने देसी बीज को सहेज कर रखना है और ऐसी ही परंपरागत पद्धतियों को बचा कर रखना है.

कृषि स्वराज पर उन्होंने कहा कि जल जंगल जमीन जानवर और बीज को बचा कर, परंपरागत कृषि प्रणालियों को पुनः व्यवहार में लाने से ही कृषि स्वराज की स्थापना होगी। जो भोजन विविधता समुदाय की थाली में पहले थी वह पुनः लानी होगी। बीज स्वराज: बीज निगम के द्वारा मात्र 7-8 बीज की किस्मों का वितरण किया जाता है जबकि समुदाय स्तर पर लगभग 20 किस्मों का बीज संरक्षित है। किसी भी आदिवासी की भांति ही देसी बीज भी हर मौसम में अपने आप को बचा लेता है इसलिए ये आवश्यक है कि बीज का स्वराज स्थापित हो जो समुदाय आधारित बीज प्रणाली से संभव है। मृदा के कटाव और स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 3M - मिनरल्स, मॉइस्चर और माइक्रोब्स जैसे तत्वों को जैसे बिल्कुल ही भुला दिया गया है। इसके समाधान के तौर पर जोशी ने कहा कि नरेगा के माध्यम से यदि 50 दिन का रोज़गार किसान को उसके खेत में मेड़बंधी जैसे कार्यों के लिए तय कर दिया जाये तो यह समस्या समाप्त हो सकती है।

शिक्षा के स्वराज पर उन्होंने कहा कि आज के समय में बेरोज़गारी बहुत अधिक बढ़ गयी है। गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा का सिद्धांत ही आज की बेरोज़गारी को मिटाने का एक मात्र उपाय है और उसे आज के परिप्रेक्ष्य में पुनः लाना होगा। सांस्कृतिक स्वराज: समुदाय में प्रचलित हलमा जैसे रीति-रिवाज़ आज बाज़ार के प्रभुत्व और समुदाय की उस पर निर्भरता के कारण ख़राब और धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। यदि इन्हें बचाया नहीं गया तो आने वाली पीढ़ियॉं इन सब से वंचित रह जाएँगी।

पदयात्रियों के केकड़ी पहुँचने पर नगर पालिका केकड़ी के अध्यक्ष श्री कमलेश कुमार जी साहू, उपाध्यक्ष श्रीमती संपत देवी, पार्षद श्री रमाकांत जी दाधीच, पार्षद श्री रतन जी पंवार, पार्षद इन्साफ अली स्वर्गर, गाँधी दर्शन समिति के सदस्य श्री राधे श्याम जी गोपलान, सेवादल अध्यक्ष श्री मूल चन्द जी माहवार, सह-अध्यक्ष चेतन दास और जसवंत कुमार जी, सामूदायिक संगठक एन्युलम और किशन लाल जी ने सभी पदयात्रियों का स्वागत किया. इस अवसर पर जयेश जोशी ने कहा कि आपने जो हमारे विचारों को संबल दिया है उसके लिए हम आप सभी का धन्यवाद और आपका अभिनन्दन करते हैं. सभी स्वागतकर्ताओं का संस्था की ओर से उपरना ओढा कर अभिनन्दन किया.

इस अवसर पर नगर पालिका केकड़ी के अध्यक्ष श्री कमलेश कुमार जी साहू ने कहा कि गाँधी जी ने एक धोती और लंगोटी में देश को आजादी दिलाई. उनका दर्शन ही जीवन का सच्चा आदर्श है. आपके विचार गाँधी जी की विचारधारा के अनुरूप हैं आप जो सन्देश ले कर चले हैं उसके लिए आप सभी की सफल यात्रा की कामना करता हूँ.