जिस धरती से विनोबा भावे ने ग्राम स्वराज की बात की और जहाँ से गोविन्द गुरु ने स्वराज की लड़ाई लड़ी वहीँ से शुरू हुआ वाग्धारा का प्रयास एक नयी इबारत लिखेगा

स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा, समाज में फैल रही असमानता और ख़त्म होते संवाद को दूर करने में होगी सहायक
September 20, 2022
प्रसन्नता और समरसता के जीवन का उपाय स्वराज की जीवनशैली ही है
September 22, 2022
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गाँधी की स्वराज संकल्पना के अनुरूप स्वराज का सपना पूरा करने का आग्रह ले कर मानव का मानव के साथ; पीढ़ियों का पीढ़ियों के साथ; विभिन्न वर्गों का आपस में; सरकार का समुदाय के साथ और इंसान का प्रकृति के साथ संवाद और संवाद से समरसता पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से बांसवाड़ा अंचल के प्रकृति के संरक्षक समुदाय की “स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा" 11 सितम्बर को जनजातिय स्वराज केन्द्र, कूपड़ा से चल कर आज भीलवाड़ा पहुँची। 21 दिन की ये पदयात्रा 1अक्टूबर को जयपुर पहुंचेगी और 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के पावन अवसर पर जयपुर में आग्रह सम्मलेन के साथ इसका समागम होगा।
यात्रा का नेतृत्व कर रहे वागड़ के गाँधी के नाम से ख्याति प्राप्त वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने बताया कि गाँधी के स्वराज की अवधारणा का एकमात्र उदाहरण आदिवासी तथा उसकी आदिवासी जीवनशैली है। स्वराज को सही मायने में जनजातीय समुदाय ने ही जिया है और सभी संसाधनों का संरक्षण व संवर्द्धन किया है

स्वराज आधारित जीवनशैली के कई उदाहरण विश्व के कई कोनों में हैं परन्तु धीरे धीरे ये बाज़ार पर निर्भरता के कारण समाप्त होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज देश और दुनिया में जो संवादहीनता के स्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं उसे ख़त्म करने और आज की बदली हुई जीवनशैली में प्रसन्नता और समरसता के जीवन का उपाय स्वराज की जीवनशैली है और इसे पुनः स्थापित कर दुनिया को एक सन्देश देना होगा।

जोशी ने कहा कि हमारे स्वराज के अनुभव चाहे वे सच्ची खेती के हों या मानव विकास अथवा समुदाय की भागीदारी के हों बहुत अच्छे रहे हैं। हमारी इच्छा है कि किसान की थाली में जो भोजन होता है वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS ) का हिस्सा बने। हमारी इस यात्रा का यही उद्देश्य है कि परंपरागत खेती को बढ़ावा मिले, ग्राम स्तर पर बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ साथ उनके अधिकार सुरक्षित रहें और खाद्य एवं स्वास्थ्य का स्वराज स्थापित हो। मूल रूप से स्वराज के संदेशों को , जिन्हें हमने बहुत पीछे छोड़ दिया है उन्हें फिर से आगे लाने की ज़रुरत है।

कृषि स्वराज पर उन्होंने कहा कि जल जंगल जमीन जानवर और बीज को बचा कर, परंपरागत कृषि प्रणालियों को पुनः व्यवहार में लाने से ही कृषि स्वाराज की स्थापना होगी। जो भोजन विविधता समुदाय की थाली में पहले थी वह पुनः लानी होगी। एक एकड़ भूमि से 1 परिवार की भोजन आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। जो भोजन किसान की थाली में होता है वह सब उसी के खेत से आना चाहिए जिससे पोषण स्वराज के साथ ही स्वास्थ्य का स्वराज भी स्थापित होगा।

बीज स्वराज: बीज निगम के द्वारा मात्र 7-8 बीज की किस्मों का वितरण किया जाता है जबकि समुदाय स्तर पर लगभग 20 किस्मों का बीज संरक्षित है। व्यपारोन्मुखी नीतियों के कारण कम्पोजिट वैरायटी का और देसी बीज लगभग भुला दिया गया है जिस कारण हाइब्रिड बीजों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। किसी भी आदिवासी की भांति ही देसी बीज भी हर मौसम में अपने आप को बचा लेता है इसलिए ये आवश्यक है कि बीज का स्वराज स्थापित हो जो समुदाय आधारित बीज प्रणाली से संभव है।

मृदा के कटाव और स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 3M - मिनरल्स, मॉइस्चर और माइक्रोब्स जैसे तत्वों को जैसे बिल्कुल ही भुला दिया गया है। इसके समाधान के तौर पर जोशी ने कहा कि नरेगा के माध्यम से यदि 50 दिन का रोज़गार किसान को उसके खेत में मेड़बंधी जैसे कार्यों के लिए तय कर दिया जाये तो यह समस्या समाप्त हो सकती है।

शिक्षा के स्वराज पर उन्होंने कहा कि आज के समय में बेरोज़गारी बहुत अधिक बढ़ गयी है। बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी युवा बेरोज़गार हैं। परन्तु समुदाय के युवा आज भी पढ़ कर खेती की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं। गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा का सिद्धांत ही आज की बेरोज़गारी को मिटाने का एक मात्र उपाय है और उसे आज के परिप्रेक्ष्य में पुनः लाना होगा।

सांस्कृतिक स्वराज: समुदाय में प्रचलित हलमा जैसे रीति-रिवाज़ आज बाज़ार के प्रभुत्व और समुदाय की उस पर निर्भरता के कारण ख़राब और धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। यदि इन्हें बचाया नहीं गया तो आने वाली पीढ़ियॉं इन सब से वंचित रह जाएँगी।

आग्रह

अगर हमें खुशहाल रहना है तो हमें परंपरागत पद्धतियों पर तो जाना ही होगा। हमारा सरकार से आग्रह है कि:

स्वराज की अवधारणा को मज़बूत करने वाली नीतियाँ बने न कि सामाजिक समरसता एवं सद्भाव को नुकसान पहुँचाने वाली।
किसान की भोजन थाली में बनने वाला भोजन PDS का हिस्सा बने।
गाँधी जी की स्वराज की कल्पना यही थी कि गांव अपने स्तर पर आत्मनिर्भर बने -छोटी बड़ी समस्या का समाधान वहीं पर हो और किसी को आगे जाने की ज़रुरत नहीं पड़े।
बीज निगम द्वारा कम्पोजिट वैरायटी का बीज स्थानीय स्तर पर खरीदा जाये और स्थानीय आवश्यकता के अनुसार उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाया जाये।

इससे पूर्व आज पदयात्रा के भीलवाड़ा पहुँचने पर मार्ग में पदयात्रियों का जगह जगह स्वागत किया गया। श्री राम नगर गुवारड़ी में पंकज जी छीपा, छोटू जी गुर्जर एवं उनके मित्र मंडली ने तिलक लगा माल्यापर्ण कर जयेश जोशी सहित सभी पदयात्रियों का फलाहार के साथ स्वागत किया। उन्होंने यात्रा के लिए शुभकामनायें देते हुए यात्रा की सफलता की मंगलकामना की। इस अवसर पर सोहन नाथ जोगी ने उपस्थित ग्रामवासियों को यात्रा के उद्देश्य के बारे में बताया। मान सिंह निनामा ने कृषि में बढ़ते बाज़ारीकरण पर अपनी चिंता से सभी को रुबरु कराते हुए उस पर से निर्भरता कम करने के स्वराज आधारित उपाय भी सुझाये।

इसी प्रकार चित्तोड़ रोड पर श्री श्री विहार में समाज सेवी सोभाग शर्मा जी ने पदयात्रियों के लिए जलपान की व्यवस्था की। पदयात्रा को मिल रहे अपार जन समर्थन से सभी यात्री अभिभूत हैं और पूरे जोश और उमंग के साथ अपनी संस्कृति की झलक बिखेरते हुए नाचते गाते जयपुर की और बढ़ रहे हैं।