महात्मा गाँधी और विनोबा जी के स्वराज संदेशों को आदिवासी अनुभवों के साथ व्यापक स्तर पर विभिन्न तबकों में ख़त्म होते संवाद की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से आयोजित स्वराज सन्देश संवाद पदयात्रा में यात्री गाँव गाँव में विभिन्न समुदायों को गाँधी जी के स्वराज संदेशों से परिचित करा रहे हैं.
जिस प्रकार एक जननी अपने द्वरा उत्पन्न प्राणी का पालन पोषण करती है उसी प्रकार धरती भी प्रकृति का पोषण करती है. यदि जननी या माता का स्वस्थ्य ठीक होगा तभी स्वस्थ संतानें पैदा होंगी उसी प्रकार स्वस्थ और उत्तम भोजन भी स्वस्थ धरती अथवा मिटटी से ही पैदा हो सकता है. मृदा का स्वास्थय ये तय करता है कि कोई भी फसल गुणवत्ता में कैसी होगी. परंपरागत कृषि पद्धतियों में जब जैविक खाद तथा पशुधन का उपयोग होता था तब मिटटी की उर्वरता बेहद अच्छी थी परन्तु गत कई वर्षों से ये चलन बदल सा गया है.
हरित क्रांति के माध्यम से बढ़ती जनसँख्या की भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के चलते खेती में कई परिवर्तन किये गए. जिनके चलते आज कृषि पद्धतियों बिलकुल बदल गयी है. आज देसी बीज की जगह वहां की क्षेत्र अनुरूप उपयुक्त बीज नहीं मिलते, जैविक खाद की बजाय कीटनाशक एवं खरपतवार नाशी का उपयोग बड़ी मात्रा में होने लगा है जिसमें मौजूद रसायनों के उपयोग से मिटटी के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. इनके उपयोग बढ़ने से धरती में शूक्ष्मजीवाणु की संख्या में भारी गिरावट आयी है. पहले केंचुए धरती में लगभग गहराइ तक मिटटी को नरम कर देते थे जिससे वर्षा का पानी मिटटी में गहरे तक समा कर उसकी नमी को बरकरार रखता था. परन्तु आधुनिक तकनीक के चलते मिटटी अब केवल कुछ हद तक की गहराइ तक ही नरम रह पाती है. मिश्रित फसलों के स्थान पर अब केवल व्यावसायिक फसलें उगाइ जाती हैं जिससे मिटटी को पूरा पोषण नहीं मिलता. मेडबंदी नहीं होने से मिटटी का कटाव खेतों को और नुक्सान पहुंचता है. मृदा स्वास्थय के तीनों अंग -खनिज, नमी और आवश्यक शूक्ष्मजीवाणु, धीरे-धीरे क्षीण होते जा रहे हैं, इनकी कमी के कारण मृदा स्वास्थय बिगड़ता जा रहा है. आज कृषि प्रधान देश में गाँव पशु विहीन हो गए है.
इन बदलावों ने हमारे जीवन में जो परिवर्तन लाये हैं उसकी वजह से मनुष्य प्रकृति से बिलकुल कट सा गया है इंसान के साथ उसके जुडाव के लेकर तो क्या ही कहा जाये. इसी जुडाव को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से, जल, जंगल, ज़मीन, पशु, बीज, खाद्य, शिक्षा, पोषण व सांस्कृतिक स्वराज जैसे अहम् विषयों पर गहन चर्चा कर विभिन्न सम्बंधित मुद्दों के संभावित समाधान को जन समुदाय के समक्ष उजागर करने के उद्देश्य से आदिवासी अंचल के समुदाय की “स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा" विनोबा भावे जी की जयंती के दिन 11 सितम्बर को जनजातिय स्वराज केन्द्र, से रवाना हो कर आज अपनी पदयात्रा के १७वे दिन ४०० किलोमीटर से अधिक का सफ़र तय कर प्रतापगढ़, चित्तोड़, भीलवाड़ा, अजमेर से होती हुई आज टोंक (उनियारा) पहुँची। अन्य समुदायों की स्वराज आधारित पद्धतियों को सीखने एवं व्यवहार में लाने तथा आदिवासी जीवनशैली के अपने अनुभवों का आदान-प्रदान करते हुए यह यात्रा 1 अक्टूबर को जयपुर पहुँचेगी जहाँ 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के पावन अवसर पर राज्य स्तरीय कार्यक्रम 'स्वराज सन्देश-आग्रह सम्मलेन ' के साथ इसका समागम होगा।
१२५ पदयात्रियों के साथ गाँव-गाँव में स्वराज संवाद कार्यक्रम के द्वारा गाँधी जी के स्वराज संदेशों को उन तक पहुँचाते, यह यात्रा जगह-जगह हो रहे स्वागत के बीच आज टोंक जिले के मुधोपुर, टोडाराय सिंह, इन्दोली तथा सांवरिया ग्राम में स्वराज संवाद कार्यक्रम में स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए स्थानीय तरीके खोजने, सरकार के भरोसे नहीं रह कर खुद की ज़िम्मेदारी को आत्मसात करते हुए वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने परंपरागत कृषि पद्धतियों को पुनः अपनाने, खेती में पशुधन का फिर से उपयोग बढ़ाने, देसी बीज का संरक्षण करने, जल संरक्षण और मृदा स्वस्थ्य के लिए आवश्यक तत्वों का उपयोग करने के लिए ग्रामीणों का आव्हान किया.
सांवरिया ग्राम में सरपंच श्री जगदीश जी तथा राम देव जी ने पदयात्रियों का स्वागत किया. संस्था की ओर से स्वागतकर्ताओं का अभिनंदन किया गया.
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