सतत कृषि, बीजों की समय पर उपलब्धता और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, वाग्धारा संस्था और की-स्टोन फाउंडेशन के तत्वावधान से जवाहर कला केंद्र में दो दिवसीय "परंपरागत कृषि और पोषण स्वराज” का आयोजन किया गया|
सम्मेलन के प्रथम दिवस दिनांक 9 मई, 2022 को पारंपरिक फसल विविधता को बढ़ावा देने, मिट्टी के स्वास्थ्य, पानी और बीज संप्रभुता के साथ छोटा अनाज (मिलेट) को बढावा देने के क्रम में और पौष्टिकता की दृष्टि से इसे पोषाहार मे शामिल करने हेतु संदेश दिया गया इस कार्यक्रम के माध्यम से पानी के संरक्षण को लेकर विस्तार से चर्चा की गई |
वर्तमान स्थिति पर ध्यान देते हुए जागरूकता लाना और स्थायी कृषि कार्यक्रमों और नीतियों को मजबूत करने के लिए चर्चा की गयी | इसके अलावा कार्यक्रम के दौरान दो दिवसीय "स्वदेशी खाद्य मेले" का भी उद्धघाटन किया गया |
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजस्थान कृषि मंत्री लालचंद कटारिया, राजस्थान जलसंसाधन मंत्री महेंद्र जीत सिंह मालवीय, डॉ. सुदर्शन अयंगर, ट्रस्टी - गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद से उपस्थित रहे | आयोजन के मुख्य वक्ता कृषि विशेषज्ञ, सरकारी विभाग के अधिकारी, किसान समूह, गैर सरकारी संगठन सदस्य शामिल रहे| वाग्धारा द्वारा प्रस्तावित इस दो दिवसीय सम्मलेन में देश के विभिन्न राज्यों से किसान समूह, कृषि विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठन, विभागीय अधिकारी सम्मिलित हुए |
सम्मेलन के प्रथम दिन राजस्थान कृषि मंत्री श्रीमान लालचंद कटारिया ने कहा जो भौगोलिक स्थिति राजस्थान में है खासकर आदिवासी इलाकों में जितनी बारिश होती है उसमें मिट्टी बह जाती है वापस मिट्टी को तैयार होने में कई साल लगते हैं इन बदली स्थितियों से किसान को मार पड़ती है वह उसे सहना पड़ता है कोरोना महामारी के बाद लोग खाने-पीने पर ध्यान देने लग गए जैविक उत्पादकों के खाद्य का लोग उपयोग करने लगे हैं पर फिर भी उसकी मात्रा बहुत कम है | पुराने संसाधन है उनको उपयोग में लेते हुए और नई तकनीक को काम में लेते हुए किसान भी उस में रुचि ले और नौजवान पीढ़ी भी उसमें जुड़ी हुई हो वर्तमान समय में मैंने यह भी देखा है कि पढ़ाई लिखाई करने के बाद युवा के दिमाग में एक ही चीज रहती है कि कैसे भी मिले सरकारी नौकरी मिल जाए, दूसरे विकल्प के रूप में प्राइवेट नौकरी करना पसंद करते हैं और शहर में रहना पसंद करते हैं | एक जमाना था जब जंगल में जानवर भी थे पर प्रकृति के साथ बैलेंस बना रहता था |
आज के सम्मेलन का विषय यह है कि छोटा अनाज को किस तरह से जीवित रख सकते हैं और बाजार में कैसे लाया जा सकता है ? मैं एक आदिवासी हूँ और वहीं से जब इस तरह की बातें निकलकर आती हैं तो मुझे खुशी मिलती है | आज भी मेरा मकान जंगल में है | मैंने ऐसा समय भी देखा है जब पूर्व दिशा में एक बादल निकल कर आता था और 3 से 4 घंटे में इतनी बारिश हो जाती थी कि नदी और नाले भर जाते थे अब ऐसा समय है कि आसमान में 12 महीने बादल घूमते हैं लेकिन बारिश नहीं होती है | मानव ने ही प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है और कोई ज़िम्मेदार नहीं है | यह बात सत्य है कि जो पुराना अनाज था उसकी 1 रोटी खाने के बाद पूरे दिन पेट भरा रहता था जबकि अब के समय में 4 रोटी खाने के बाद भी 2 घंटे में ही भूख महसूस होने लगती है | एक समय था जब बी. पी. शुगर जैसी बीमारियाँ नहीं होती थीं लेकिन अब खानपान के बदलाव से ये बीमारियाँ बहुत पाई जाती हैं | खोया हुआ बीज और पुरानी पद्धतियों को वापस से अपनाए जाने की ज़रूरत है |
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