Thousands of water conservation structures in 1041 villages were pledged to be preserved by a collective resolution of lakhs of people.

National Girl Child Day Celebrated in 1041 Villages
January 24, 2024
Zaid farming through moong a mass movement
March 30, 2024
National Girl Child Day Celebrated in 1041 Villages
January 24, 2024
Zaid farming through moong a mass movement
March 30, 2024

वागधारा एवं हिंदुस्तान यूनिलिवर फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में विश्व जल दिवस का आयोजन 1041 गांवों में किया गया I जिसमें सर्वप्रथम ग्राम स्वराज समूह और कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन की अगुवाई में परम्परागत गीतों, एवं वाध्य यंत्रों के माध्यम से स्थानीय समुदाय को एकत्रित कर गाँव में सबसे पुरानी जल संरचनाओं के पास में परम्परागत जल संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर संवाद का आयोजन किया गया।

आदिवासी क्षेत्र में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता की कमी नजर आती है जिसके कारण वे अपने खेतो में अच्छी पैदावार से वंचित रह जाते है। जल संरक्षण मानवीय समाज के लिए अनिवार्य है। आदिवासी समुदाय के लिए जल संरचनाओं को सुरक्षित रखना, मृदा में नमी को बनाते हुए उपजाऊ बनाना एवं देखभाल करना अनिवार्य है। व जल एक प्राकृतिक संसाधन है, इसे पैदा नहीं किया जा सकता। लेकिन समुदाय के प्रयासों से भूजल संरक्षित एवं पुनर्भरण किया जा सकता है। इसलिए जल प्रबंधन एवं संरक्षण करें तो ही जल संकट से बचा जा सकता है।

प्राचीन काल में आज से 40 से 50 वर्ष पहले हमारे वन संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे और उनका उपभोग भी बहुत कम था, यही वन सम्पदा हमारी मिट्टी, पानी, वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और सूखे को नियंत्रित करते थे, नदी, नालों, प्राकृतिक तालाबों में पानी हमेशा भरा रहता था I सिंचाई में पानी का उपयोग नहीं होता था, क्योंकि प्राकृतिक सम्पन्नता और पशुपालन के कारण रबी की खेती में सिंचाई की जरुरत नहीं होती थी।

लेकिन धीरे धीरे पानी का दोहन सिंचाई में बढ़ता गया क्यूंकि घटते और कटते वनों से हमारी जैव विविधता पर गहरा असर हुआ जिससे पर्यावरण पारिस्थिकी तंत्र अस्थिर हुआ, जिसने मौसमों के चक्र को प्रभावित किया और बारिश, गर्मी या सर्दी के दिनों पर असर हुआ और इनके दिन कभी कम तो कभी ज्यादा होने लगे, बेमौसम बारिश होना या अधिक सर्दी-गर्मी इसके परिणाम है।

आदिवासी क्षेत्र में जल संचयन का महत्व और अनुप्रयोग विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय रूप से भरा पूरा हैं और पानी के संसाधन का सही उपयोग करने के लिए संवेदनशील हैं।

आज विश्व जल दिवस के अवसर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं गुजरात राज्य के 1041 गांवों में जल स्वराज की परिकल्पना को साकार करने के लिए समुदाय के साथ में परम्परागत जल संरक्षण, संवर्धन के तरीके एवं जल संरचनाओं को लेकर चर्चा की, जिसमें निकल कर आया की हमारें परम्परागत तौर तरीके और जल स्त्रोतों से पानी की बहुत ज्यादा बचत होती थी, लेकिन जैसे जैसे नई नई तकनीक आती गयी, जल का दोहन बढ़ता गया और हमारे प्राकृतिक जल स्त्रोतों खत्म होते गए। वर्षा के पानी को नहीं रोकने के कारण खेतों की मिट्टी बहने लगी, उसके साथ ही उपजाऊपन कम होता गया।

इस विषय की गंभीरता को समझते हुए सभी गांवों में एक साथ सामुदायिक हलमा के माध्यम से विभिन्न जल संरचनाओं की सफाई कार्य एवं जल निस्तार के कार्य, गहरीकरण के कार्य किए गए I अंत में जल स्त्रोतों के पूजन के साथ 104326 लोगों ने एक साथ 4333 जल संरक्षण संरचनाओं को बचाने का  संकल्प लेकर शपथ ली की आगामी दिनों में हमारे गांवों में कम से कम 3 से 5 परम्परागत जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास करेंगे ताकि हमारे गाँवो में आने वाले समय में जल की समस्याओं से आने वाली पीढ़ी को निजात मिल पाएं।

उक्त कार्यक्रम में सामुदायिक वागड़ रेडियो 90.8 FM के माध्यम से हिंदुस्तान यूनिलिवर फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) श्री श्रमण झा और अनंतिका सिंह ने 31 वें विश्व जल दिवस पर समुदाय से जुड़कर संवाद में बताया की आज के युग में जल संरक्षण व संवर्धन क्यों आवश्यक है और इसमें आम नागरिक की जिम्मेदारी, एवं परिवार स्तर पर जल संचयन पर काम करने की जरुरत है I साथ ही सरकार, सामाजिक संस्थानों और स्थानीय ग्राम पंचायतों को भी जल संचयन को लेकर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि जल को आज और कल के लिए बचाया जा सके।

संस्था सचिव जयेश जोशी के द्वारा बताया गया कि जिस प्रकार से आदिवासी समुदाय ने जंगल को बचाया और जल, जंगल व जमीन के चक्रीय स्वभाव ने अपने आप में एक दुसरे को बचाया। जिस संस्कृति ने प्रकृति को परिवार माना हो, वह पानी को व्यवसाय के हवालें कैसे कर सकता है I अब हमें प्रकृति के इस अहम अंग को संभालना होगा, दोड़ते पानी को चलना, बहते पानी को खिसकना, और खिसकते पानी को बैठाना, सीखाना होगा I माना की व्यापार विकास का पैमाना है, और विकास की धुरी है, परंतु जीवन की धुरी तो प्रकृति ही है और पानी उसका अमूल्य अंग।

इस अवसर पर वागड़ के किसानों द्वारा जायद मूंग फसल को बढ़ावा देने हेतु जिला प्रशासन के माध्यम से किए जा रहे जागरूकता कार्यक्रम को देखते हुए संकल्प लिया और बताया की दलहनी फसल मूंग हमारे आहार व पोषण हेतु उत्तम है तथा हमारी मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी कारगर साबित होगी, इसलिए हम सब भी अपने खेतो में इस बार मूंग की खेती करेंगे। साथ ही संस्था द्वारा चर्चा में बताया गया की यह फ़सल 2 महीने में ही पक कर तैयार हो जाती है, चूँकि यह नकदी फसल है इसलिए प्रति बीघा 15 से 16 हजार रूपये की अतिरिक्त आय भी प्राप्त होगी। इससे गर्मी के दिनों में हमारे क्षेत्र से होने वाला पलायन भी रुकेगा और हमारे पशुओं के लिए भी चारे की व्यवस्था हो जाती है मूंग के जो पत्तियां सूख कर गिर जाती है तो मिट्टी के कार्बनिक पदार्थो में भी वृद्धि होती है जिससे अगली खरीफ़ की फसल में अच्छा उत्पादन मिलता है। इस वर्ष जायद मूंग जिले में 8 से 10 हजार किसानों के माध्यम से की जा रही है जिससें इसका रकबा अतिरिक्त 5000 हेक्टेयर तक बढ़ने की सम्भावना है।