Sangeeta Ninama, husband Rajesh Ninama, resident of Village Thechla, Gram Panchayat Sagbari, Block Pipalkhoont, District Pratapgarh, located on the other side of Mahi River and about 45 kilometers from Banswara district headquarters, has been associated with Vaagdhara for the last 3 years.
Sangeeta says that she has two children, the girl is 11 years old and studies in fifth grade and the boy is 8 years old, studying in third grade. Her husband works as a meson, together with whom she used to migrate for labor up to 3 years ago. For this, they would go to the Malwa region of Gujarat and Madhya Pradesh, earning wages that barely allowed them to survive, unable to even afford sufficient food.
When she joined the Saksham Samooh facilitated by Vaagdhara, she received training on different types of agricultural activities and traditional methods and processes under the Livelihood and Food Security Project supported by K.K.S. from Germany.
Along with training, she also received the necessary materials such as seeds and vermicompost from Vaagdhara, which allowed her to implement what she had learned in the group. Using this, she has now built a nutrition garden where fresh vegetables are available year-round. This ensures her family’s nutritional security. Ever since joining the group, she tells us, she has not had to buy any food from the market; she has become fully self-sufficient. She has also been able to cut the use of costly chemical fertilizers, as she and her husband are now making Dashparni and Jeevamrit, traditional organic fertilizers, along with using the composted manure from her vermicompost. According to Sangeeta, this keeps her family healthy and allows her to share her produce with other women from her hamlet, a lot of women are now adopting the same practices as her.
For the last 3 years, Sangeeta has been able to cover her family’s needs with vegetables from her own production, selling the excess vegetables. Through this, she is earning between Rs. 5000 - 7000 per cropping season, which, along with her other sources of income, generates an annual income of Rs. 40K-45K. Added the Rs. 20K-25K that her husband earns from stone masonry each year, their family is able to live very well. When her husband is not out working, he helps Sangeeta on the farm.
Thanks to joining the Saksham Samooh, Sangeeta says, her children are now able to get a good education, the farm business is going well, and she lives together happily with her family.
परम्परागत खेती से पोषण एवं आजीविका संवर्धन
माही नदी के दूसरे छोर पर और बाँसवाड़ा ज़िला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव ठेचला, ग्राम पंचायत सागबारी, ब्लॉक पीपलखूंट, जिला प्रतापगढ़ की रहने वाली संगीता निनामा पति राजेश निनामा, जो पिछले 4 वर्षों से वागधारा संस्था से जुड़ी हुई हैं I
संगीता बताती है कि मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़की 11 साल की है व पांचवी कक्षा में पढ़ती हैं और लड़का 8 साल का है, तीसरी कक्षा में पढ़ता है और मेरे पति कारीगर का कार्य करते हैं, जो 3 वर्ष पहले तक बाहर कमाने के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में जाते थे वहां कारीगर का कार्य करके जो कमाते थे उससे हमारा गुजर बसर हो रहा था, दोनों वक्त का भोजन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता था I
लेकिन वर्ष 2020 से मैं वागधारा संस्था एवं के.के.एस. जर्मनी द्वारा संचालित आजीविका एवं खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत गठित सक्षम समूह में जुड़ी हूं, तब से मुझे खेती से पोषण में सुधार व आजीविका संवर्धन को लेकर अलग-अलग प्रकार की गतिविधियों, परम्परागत तौर तरीके व प्रक्रियाएं इत्यादि पर प्रशिक्षण मिलता रहा है और अलग-अलग प्रकार की सामग्री एवं देसी बीज उपलब्ध हुए, जिनके द्वारा मैं अपनी खेती को सुधार रही हूं और जिससे मेरी आय में भी सुधार कर रही हूं, साथ ही मेरे द्वारा पोषण बगिया का निर्माण भी किया गया है जिससें परिवार का पोषण में भी सुधार हुआ है, जिसमें दो वक्त की ताजा सब्जी 12 माह उपलब्ध हो रही है एवं जब से समूह में प्रशिक्षण मिला है तब से मुझे बाजार से किसी प्रकार की रासायनिक दवाई एवं रासायनिक खाद लाने की जरूरत नहीं पड़ रही है, क्योंकि मैं अपने पति के सहयोग से दशपर्णी, जीवामृत एवं वर्मी कंपोस्ट और कंपोस्ट खाद बनाने का कार्य ख़ुद के स्तर पर ही कर रही हूँ एवं जिसका उपयोग अपने खेत में कर रहे हैं, जिससे मेरे परिवार का स्वास्थ्य अच्छा रहता है एवं इस तरह की जानकारी मेरे फलें की अन्य महिलाओं को भी देती हूं, जिससें अब वह भी अपनी खेती में कई प्रकार की प्रक्रियाओं को शामिल कर रही है I
पिछले 3 वर्षों से मेरे खेत में सब्जी उत्पादन कर रही हूं जिससे मेरे घर में उपयोग आने वाली सब्जी के अलावा जो बचती है उसको मैं घर से ही बेच देती हूं जिससे मुझे अलग-अलग सीजन में 5 हज़ार से 7 हज़ार रूपये की आय हो रही हैं, इसके अलावा खेती से होने वाली आय को मिलाकर लगभग मेरी वार्षिक आय 40 से 45 हज़ार खेती से हो जाती है और मेरे पति स्थानीय स्तर पर ही कारीगर का कार्य करके साल भर के 20 से 25 हज़ार रूपये घर बैठे कमा लेते हैं, जिससे मेरे परिवार का गुजार बसर काफ़ी अच्छे से हो रहा है I मेरे पति घर पर ही रहते हैं और आस पास जो कार्य मिलता है वह करके बाकी का समय खेती में देते हैं जिससे मुझे अब किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है और मैं मेरे बच्चों को अच्छे से पढ़ा पा रही हूं, संस्था के मार्गदर्शन एवं सक्षम समूह के साथियों के सहयोग से मुझे एक अच्छी जिंदगी की शुरुआत करने को मिली जिससे मैं और मेरा परिवार एक साथ हंसी ख़ुशी के साथ रह पा रहे हैं I