Women, forming half of our nation’s population, are becoming increasingly important players in the field of development. From acting as change agents in their own environment to raising their voices in politics, many women are leaving no stone unturned in working toward India’s progress as a country. Some of the best examples of female empowerment can be seen in the tribal women of remote rural villages.
Through its Saksham Samooh, Vaagdhara seeks to aid this process of self-empowerment. Under the KKS-supported Food and Nutrition Project, Vaagdhara is introducing the all-female members of these groups to poultry farming, in an effort to boost their incomes and help tribal families to secure their livelihoods.
After receiving training, many of the beneficiary female farmers have now become self-sufficient and support themselves and their families through agriculture-adjacent activities such as poultry farming. One such woman is Kamtu Devi w/o Dalia Ninama, a smallholder farmer of Dhanavapada, Bori village in the Bori Panchayat of Pipalkhoont block, Pratapgarh district, who is supporting herself and her family of 4 bighas of land.
Kamtu Devi tells us that before joining Vaagdhara’s Saksham Samooh, she faced difficulties in meeting her family's needs, due to insufficient yields from her 4 bighas of land, which she only cultivated during the rainy season. In the off-season, she and her husband Dalia would often have to go to the city of Pratapgarh to work for wages, in order to support their family’s daily needs.
4 years ago, Kamtu Devi became associated with Vaagdhara’s Saksham Samooh group, in which capacity building on organic farming and other activities is carried out during the monthly meetings. The women are encouraged to become self-sufficient by implementing the techniques of “true farming”.
Under the KKS-supported project, Vaagdhara is promoting indigenous fertilizers, medicines, seed practices, and animal husbandry, which all work to generate greater income for the beneficiaries while reducing their expenditures on external inputs. Thus, livelihood is boosted in the area.
Kamtu Devi tells us she received 30 chicks from program support 2 years ago. 15 were of the Kadaknath breed, and 15 more were of the Pratap Dhan breed. The chicks became part of her family as she used the knowledge gained in Saksham Samooh meetings on how to raise poultry and ensure their growth. After adopting poultry farming, she told her husband to build a chicken pen, where they could collect the eggs laid by the chickens and expand their poultry business.
Today, she is earning around Rs. 3000-3500 per month from selling eggs and whole chickens. In total, she has 28 chickens and 4 chicks, of which she has kept a record on a list. As the Kadaknath breed is less known in the area where Kamtu lives, she takes them to the nearest large market, called ‘Haat Bazaar’. There she collects double the price for the Kadaknath chickens as compared to local breeds.
From the additional revenue generated through poultry farming, Kamtu spends a lot on the education of her children, saving the rest. Through the Saksham samooh meetings, she also learned about her entitlement to 100 days of paid labor through the government’s MGNREGA scheme. Before, she had only used this for 10-20 days per year.
Now, she tells us, she wants to promote her poultry business by staying home from wage migration, on which she no longer relies thanks to adopting “true farming” practices. She currently earns Rs. 30’000-40’000 annually from poultry farming.
मुर्गी पालन से बढ़ी आत्म निर्भरता
देश की आधी आबादी राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान की कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। महिलाएं आज समय के साथ अपने आपको भी बदल रही हैं और विकास की अहम कड़ी साबित हो रही हैं। यही वजह है कि आज ये किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। फिर चाहे वह दूर-देहात में बसने वाली ग्रामीण महिलाएं ही क्यों न हों। जी हां, इसका बेहतरीन उदाहरण पेश कर रही हैं।
दरअसल, यह महिलाएं वागधारा द्वारा गठित सक्षम समूहों से जुड़कर महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं । दक्षिणी राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के पीपलखूंट ब्लॉक के आदिवासी परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सक्षम समूह की महिलाओं को मुर्गी पालन से जोड़कर स्थानीय स्तर पर आजीविका सुनिश्चित करवाने का कार्य स्वयं सेवी संस्था वागधारा ने के.के.एस. समर्थित खाद्य एवं पोषण परियोजना के तहत प्रारंभ किया।
इन महिलाओ प्रशिक्षित किया और अब ऐसी कई महिलाएं हैं, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनी हैं और मुर्गी पालन जैसी आजीविका की गतिविधि से जुड़कर खुद का एवं अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है, मुर्गी पालन के कार्य से आत्म निर्भरता और सफलता की ओर अग्रसर हैं पूरे क्षेत्र के लिए मिसाल बनी है जिसका नाम है कमतू देवी पती दलिया निनामा जो गाव धनावापाडा, बोरी, ग्राम पंचायत बोरी, ब्लॉक पीपलखूंट जिला प्रतापगढ़ राजस्थान की रहने वाली सीमांत किसानों हैं जो 4 बीघा जमिन पर खेती करके अपना जीवन यापन कर रही है।
अपने विगत दिनों के बारे में कमतू देवी बताती हैं कि 4 बीघा वर्षा आधारित खेती होने से पर्याप्त मात्रा में उपज नहीं होने के कारण पारिवारिक जरुरतो की पुरा करने में बडी दिक्कत आती थी, और मैं और मेरे पति दलिया मजदूरी के लिए बाहर प्रतापगढ़ में जाते थे और अपनी दैनिक जरुरत पुरा करते थे।
कमतू देवी आगे बताती हैं कि, मैं वागधारा संस्था से पिछले 4 वर्षों से जुड़ी हुई हूं संस्था द्वारा हमारे गांव में महिलाओं का समूह गठित किया हुआ है, जो हमे महिलाओं की भूमिका पंचायत में महिलाओ कि भागीदारी, सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ लेने और संस्था के सच्ची खेती के तहत जैवीक खेती के लिए प्रोत्साहित करके क्षमतावर्धन करती है जिसकी प्रति माह बैठक होती है।
जिसमें अलग-अलग प्रकार के प्रशिक्षण दिए जाते हैं साथ ही महिलाओं को खेती में कम खर्च में अधिक लाभ मिले जिसके लिए संस्था केकेएस परियोजना के तहत इन महिलाओं की आजिविका बढाने हेतू सतत प्रयासरत हैं और देसी खाद देसी दवाई देसी बीज एवं पशुपालन एवं मुर्गी पालन को बढ़ावा दे रही है।
मुझे वागधारा परियोजना के तहत 2 वर्ष पूर्व मैं 30 मुर्गी के चूजे दिए गए थे जिसमें 15 कड़कनाथ काले रंग के एवं 15 चूजे प्रताप धन के मिले थे ,जो मेरे परिवार का हिस्सा बने उन्हें में अच्छे से पालन पोषण करके बड़े किए हैं एवं उनके लिए अलग-अलग प्रकार के तौर तरीके अपनाएं जिससे मुर्गी पालन को अच्छे से कर सकूं एवं उससे मेरी आय में सुधार कर सकूं जिसके लिए मेरे पति से मैंने मुर्गियों के लिए घर बनवाया एवं अलग-अलग मुर्गियों के अंडे रखने के लिए टॉपले तैयार करवाएं।
जिससे मैं मुर्गियों को अधिक बढ़ा सकूं एवं बेच सकूं आज मुझे मुर्गी पालन से घर बैठे लगभग प्रति माह 3000 से 3500 रुपए तक की कमाई मिल रही है मेरे पास अब 28 मुर्गियां एवं 4 मुर्गे हैं जिससे मैं सूची तैयार करके मुर्गे एवं अंडे बेचकर कमाई कर रही हूं और कड़कनाथ हमारे क्षेत्र में लोग कम जानते हैं जिसको मैं हमारे आसपास के क्षेत्र में यहां पर भी हाट बाजार लगता है उस में ले जाकर बेचती हूं, जिससे मुझे देसी मुर्गी के बजाय दुगुने पैसे मिलते हैं बेच कर मिले पैसे को मैं अपने परिवार में बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर रही हूं, साथ ही बचता है तो मेरे घर के राशन में उपयोग करती हूं और अन्य खर्चे मेरे पति स्थानीय मजदूरी कर के कमाते हैं उनसे चल पाता है साथ ही नरेगा योजना से हमारे को 100 दिवस का रोजगार गारंटी योजना में कार्य भी मिला जो संस्था से जुड़ने से पहले 10 से 20 दिन का ही मिल पाता था I अब मैं अपने घर पर रहकर ही मुर्गी को और बढ़ावा देना चाहती हूं साल में मैं मुर्गी पालन से तीस से चालीस हजार रुपये कमा पाती हूँ और यह पैसो से बच्चो की शिक्षा और घर के अन्य आवश्यक कामों में लगा लेती हूँ।