Hurja Devi, a resident of Gadra village, Padla Gram Panchayat of Ghatol block, Banswara, became self-employed by growing fruits and vegetables in her Nutrition Garden. As a result, Hurja's family no longer had to migrate to Gujarat to receive wages. Before joining the women’s farmer group, she said, they had no source of income at home, relying on wages from migrant labor. One day in 2019, she joined a meeting of Vaagdhara’s women’s farming group in her village at the behest of Manjula Devi, the group’s president. In the meeting, the women were taught how to improve their livelihood and ensure the food security of their families by implementing kitchen gardens, vermin beds, fruit and vegetable plants, rearing ‘Sirohi’ goats, and modern farming techniques in their households and agricultural practices. The training was given under the KKS-supported SIFS project by Vaagdhara.

After this training, Hurja started growing her own vegetables on a 1-bigha-large field. These vegetables generate 55-60 thousand rupees per year on the market, on top of feeding Hurja and her family. The income earned through selling vegetables was spent on the education of her children. With hard work, eagerness to learn, and innovation, Hurja implemented Vaagdhara’s ‘true farming’-techniques such as the use of vermin beds/compost, cow dung manure, and a fruit garden. Vegetable kits, Vermin beds, and other facilities were availed by Vaagdhara. During the rainy season, she grew different types of vegetables on her field of 1 bigha. The Sirohi breed goat she received from Vaagdhara gave birth to two kids, which she sold for Rs. 24,000.

Hurja thanked Vaagdhara for making a positive difference in her life and that of her family. Majid Khan of Vaagdhara said Hurja's family had to migrate to Gujarat for wages before 2019 and cultivated their fields only during the rainy season. This also caused the children to miss classes most of the year. Joining the women's farmer group made a big difference in their lives. Through her participation in the group meetings, she now helps improve the livelihoods of the other women. Hurja has four daughters, only one of whom is married; the other three are still in school.

"तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तभी तो जमाना बदलेगा"

इस कहावत को चरितार्थ में यथार्थ किया है हुरजा देवी ने।

गांव गडरा, पंचायत पाडला, ब्लाँक घाटोल में रहने वाली इस महिला की बहुत ही दुःख भरी कहानी थी । परिवार नियोजन की जानकारी नहीं होने से चार बालक बालिकाएं है, एक बालिका की उम्र शादी के करीब है। घर में किसी भी प्रकार का कोई भी आय का साधन नहीं था, केवल पलायन कर मजदूरी करने के अलावा। गुजरात में मजदूरी करने चले जाने पर यहां घर में सार संभाल करने वाला कोई नहीं था एवं पलायन की मजदूरी से जैसे तैसे घर चल रहा था, दूसरा कोई आय का साधन नहीं था। जब हुरजा देवी को पता चला कि गांव की सक्षम समूह महिलाएं बैठक में जा रही हैं, तभी पूछा कि यह क्या बैठक है और क्या मैं उसमें जुड सकती हूँ? तभी सक्षम समूह की अध्यक्ष मंजुला देवी ने बताया कि आप भी हमारे साथ बैठक में चलो। वहां पर बैठक में के.के.एस. एवं वाग्धारा संस्था के माध्यम से आजीविका संवर्धन और परिवार की खाद्य सुरक्षा को टिकाऊ और मजबूत बनाने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा था, जिसे हुरजा देवी ने बहुत ही ध्यान से सुना और आगे से वह हर बैठक में नियमित रुप से जानें लगीं। अब वह भी सक्षम समूह से जुड़ गई एवं नियमित बैठकों में किचन गार्डन, वर्मी बेड, फलदार पौधे, एवं सिरोही नस्ल की बकरी एवं खेती के नए-नए तरीकों का हुनर बताया गया और उनके बारे में प्रशिक्षण दिया गया। हुरजा देवी ने अपने विगत दिनों के बारे में बताया की मैं अपने परिवार के गुजर बसर के लिए पलायन करती थी, परंतु जब मैं वर्ष 2019 में सक्षम समूह की सदस्य बनी तो मैंने प्रति माह बैठकों में जाना शुरू किया, जिस पर मुझे स्थानीय कार्मिकों ने बताया कि अब आपको पलायन पर जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी, जितना आप वहां कमाते हो उससे ज्यादा कमाई अपने घर पर ही हो जाएगी, आपका परिवार का लालन पालन एवं पोषण भी अच्छे से होगा। स्वास्थ्य में सुधार आएगा साथ में आपके बच्चे समय पर स्कूल जा सकेंगे बालिका की जो शादी है वह भी आप बड़े धूमधाम से कर सकते हैं। चार बीघा जमीन पर वर्षा आधारित खेती करने वाली हुरजा देवी अपने मेहनत और सीखने कि ललक नवाचार से वर्मी बेड से केंचुआ खाद, गोबर खाद, फलदार वाड़ी से सच्ची खेती अपनाई और बरसात के मौसम में एक बीघा खेत में अलग-अलग सब्जी उगाई गई। सभी सब्जी कीट, पौधे, वर्मी बेड  एवं समस्त सुविधाएं वागधारा के माध्यम से उपलब्ध करवाए गए। मैंने उसी वर्ष 55 से 60 हजार की सब्जी बेचकर लाभ कमाया एवं मेरे घर पर खाने के लिए भी सब्जी पर्याप्त मात्रा में मिल गई। बच्चों की पढ़ाई के खर्चे के लिए मुझे ब्याज पर पैसे नहीं लाने पड़े। सिरोही नस्ल की बकरी दी गई, उसके दो बच्चे हुए एवं मुझे दूध भी वर्षों बाद नसीब हो पाया। मैंने बकरी के दोनों बकरों को बेचा तो मुझे ₹ 24000 की आमदनी भी हुई, इसी प्रकार संस्था के माध्यम से मेरे जीवन में परिवर्तन आया है। अब मैं और मेरा पति हम दोनों संस्था के प्रशिक्षण के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं एवं पुत्री की शादी भी करवाई जिसमें मुझे ब्याज पर पैसा लेने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरे जीवन में यह सभी परिवर्तन संस्था से जुड़ने के बाद में आए। क्योंकि मेरे पास जमीन भी थी, सब कुछ था परंतु मुझे समझ नहीं थी कि आखिर मैं करूं तो क्या करूं, परंतु मुझे के.के.एस. परियोजना के माध्यम से समस्त सुविधा उपलब्ध करवाई गई जिसके लिए मुझे यह सब लाभ हुआ।  

वागधारा के माजिद खान ने बताया कि हुरजा देवी का परिवार पलायन करता था, वर्षा ऋतु के बाद थोडी सी खेती करके वह मजदूरी करने के लिए बाहर चला जाता था जिससें बच्चों की पढ़ाई छूट जाती थी। संस्था से जुड़ने के बाद उनके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है, साथ ही सक्षम समूह की अन्य महिलाओं के साथ में मिलकर गाँव की अन्य महिलाओं के आजीविका संवर्धन में सहयोग कर रही है।