“1000 गांवों में वाग्धारा एवं जनजातीय स्वराज संगठनो की ओर से मृदा दिवस का आयोजन”
बांसवाड़ा। मिट्टी की बिगड़ी सेहत चिंताजनक है । किसानों को तो नुकसान है ही, आमजन भी स्वस्थ और पौष्टिक भोजन से दूर होते जा रहे हैं । मिट्टी की बिगड़ी सेहत को सुधारने का संकल्प केवल नीतियों और वैज्ञानिक विधियों से ही संभव नहीं है, समुदाय और स्वयं के स्तर पर पहल जरूरी है। इस अवधारणा के मद्देनजर वाग्धारा संस्थान की ओर से विश्व मृदा दिवस पर रविवार को राजस्थान, गुजरात व मध्यप्रदेश के 1000 गावों में विभिन्न आयोजन किए गए । इस मौके पर लोगों ने मृदा स्वास्थ्य को लेकर संकल्प किए । वाग्धारा के साथ 26 जनजातीय स्वराज संगठनों व जनजातीय विकास मंच ने भागीदारी निभाई । तीनों राज्यों में मृदा स्वास्थ्य के सामुदायिक संवाद में करीब एक लाख लोगों की उपस्थिति रही । अपने खेत, अपने फलें व अपने गांव की मिट्टी को बचाने की एक साथ शपथ ली । संस्थान के सच्ची खेती कार्यक्रम प्रभारी पी.एल. पटेल ने बताया कि इस वर्ष विश्व मृदा दिवस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य सुधार, खाद्य सुरक्षा, परिवर्तित होते पर्यावरण और बदलती परिस्थिति का स्थिरकरण एवं नीति निर्माताओं, वैज्ञानिको को उचित दिशा में कार्य करने के लिए उत्साहित और प्रेरित करना है । बांसवाड़ा में वाग्धारा के कृषि विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद रोकडिय़ा ने कहा कि भरपूर मात्रा में रासायनिक उर्वरकों, दवाइयों का उपयोग कर मृदा को सख्त और प्रदूषित कर रहे हैं । मृदा एक जीवंत सम्पदा है । इसके भीतरी और ऊपरी सतह के वातावरण में कई छोटे जीव पलते है, जिससे मृदा स्वास्थ्य जीवंत और उपजाऊ रखने में मदद मिलती है । लेकिन वर्तमान में यह संतुलन बिगड़ गया है ।
वाग्धारा संस्था सचिव जयेश जोशी ने कहा कि हमें मृदा को उपजाऊ और जीवंत रखने के लिए पूर्वजों का अनुसरण करना ही होगा । इसके लिए जरूरी है कि परम्परागत खेती को अपनाएं और अधिक से अधिक देसी खाद का उपयोग करें । वाग्धारा प्रयासरत है कि समुदाय की इस विरासत को सहेजने में युवा भी जुड़े ।
ढोल बजाकर किया एकत्रित
स्थानीय संगठन सक्षम समूह और ग्राम विकास बाल अधिकार समिति द्वारा आदिवासी समुदाय के लोगों को आयोजन के लिए परम्परागत तरीके से ढोल-कांसा बजाकर एकत्रित किया गया । कार्यक्रम स्थल पर लोगों को अपने-अपने खेत की मिट्टी व पानी के साथ पहुंचने को कहा । आयोजन में मृदा संरक्षण के लिए स्थानीय ज्ञान, तौर तरीकों को साझा किया गया । अपने-अपने खेतों से लाई गई मिट्टी,बीज व पानी की पूजा और धरती माता की आरती की गई ।
यह भी बताया
संस्था के माजिद खान ने बताया कि मृदा स्वास्थ्य के साथ ही कृषि औजार, छोटे अनाज, परम्परागत जल संसाधन यथा नदी, तालाब, बावड़ी, कुआ, तलाई, को बचाए रखने पर भी चर्चा की गई । साथ ही वृक्षारोपण,मेडबंदी, एनिकट, चेक डेम निर्माण आदि कार्यों के लिए कार्ययोजना बनाने और सभी में सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया ।
अब करेंगे निरंतर संवाद
संस्था के रवीन्द्र रकवाल के अनुसार कार्यक्रम में सहभागियों ने अपने खेतो में जैविक खाद और स्वयं निर्मित जैविक उर्वरको का उपयोग कर मृदा संरक्षण करने की प्रतिबद्धता दोहराई । ग्राम सभाओं और चौपालों में इस संबंध में निरन्तर संवाद का निर्णय किया । सहभागियों ने आश्वस्त किया कि गांव स्तर पर मृदा, जल, जंगल, पशु सम्पदा एवं बीज संर्वधन सम्बन्धित योजनाओं में भागीदारी निभाएंगे ।
हलमा को पुनर्जीवित करने के लिए किया प्रयास
सच्चा स्वराज कार्यक्रम प्रभारी परमेश पाटीदार ने बताया की मृदा दिवस कार्यक्रम के अंत में ग्राम वासियों के द्वारा गाँवो में हलमा द्वारा सामुदायिक तालाब, खेत तालाब,जल स्त्रोतों की सफाई, स्कूल में बच्चों के लिए पोषण बगिया निर्माण इत्यादि सामूहिक श्रम कार्य किये गये । मृदा दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाया गया ।
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