स्वराज के बुनियादी सिद्धान्तों को पुनर्स्थापित करने का आग्रह ले कर चल रही “स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा”

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मानव का मानव के साथ ; पीढ़ियों का पीढ़ियों के साथ ; सरकार का समुदाय के साथ और इंसान का प्रकृति के साथ संवाद और संवाद से समरसता पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से बांसवाड़ा अंचल के वंचित समुदाय की “स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा" आज अपने नवें दिन 200 किलोमीटर का सफ़र तय कर शक्ति और भक्ति की नगरी चित्तौड़गढ पहुँची।

समुदाय का नेतृत्व कर रहे वाग्धारा संस्था के सचिव जयेश जोशी ने बताया कि गाँधी के स्वराज की अवधारणा को सही मायने में जनजातीय समुदाय ने ही जिया है। आदिवासी व कृषक समुदाय ने सदियों से आज तक प्राकृतिक संसाधनों - जैसे बीज, मिटटी, जल, जमीन और जानवर का संरक्षण व संवर्द्धन किया है तथा जीवन मूल्यों को समाज के लिए जीवित रखा है। परंपरागत कृषि प्रणालियाँ उसकी खाद्य तथा पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं। अपनी संस्कृति को आज भी बचाने के लिए जी जान से लगा हुआ है।

जोशी ने कहा कि हमारे स्वराज के अनुभव चाहे वे सच्ची खेती के हों या मानव विकास अथवा समुदाय की भागीदारी के हों बहुत अच्छे रहे हैं। हमारी इच्छा है कि किसान की थाली में जो भोजन होता है वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS ) का हिस्सा बने। हमारी इस यात्रा का यही उद्देश्य है कि परंपरागत खेती को बढ़ावा मिले, ग्राम स्तर पर बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ साथ उनके अधिकार सुरक्षित रहें और खाद्य एवं स्वास्थय का स्वराज स्थापित हो ।

मूल रूप से स्वराज के संदेशों को, जिन्हें हमने बहुत पीछे छोड़ दिया है उन्हें फिर से आगे लाने की ज़रुरत है। हमारा सरकार से आग्रह है कि स्वराज की अवधारणा को मज़बूत करने वाली नीतियाँ बने न कि सामाजिक समरसता एवं सद्भाव को नुकसान पहुँचाने वाली। परंपरागत कृषि को बढ़ावा मिले - ऐसी नीति हो जिससे खाद्य एवं पोषण का स्वराज स्थापित हो; बुनियादी शिक्षा पुनः शुरू हो; समुदाय के माध्यम से बीजों के लिए विकेन्द्रीकृत प्रणाली हो, नरेगा के माध्यम से में मृदा व जल संरक्षण के लिए नियमित रोज़गार सुनिश्चित हो, इसी आग्रह के साथ हम इस यात्रा को जयपुर तक ले जा रहे हैं।

बीज निगम के द्वारा मात्र 7-8 बीज की किस्मों का वितरण किया जाता है जबकि समुदाय स्तर पर लगभग २० किस्मों का बीज संरक्षित है। व्यपारोन्मुखी नीतियों के कारण कम्पोजिट वैरायटी का और देसी बीज लगभग भुला दिया गया है जिस कारण हाइब्रिड बीजों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। किसी भी आदिवासी की भांति ही देसी बीज भी हर मौसम में अपने आप को बचा लेता है इसलिए ये आवश्यक है कि बीज का स्वराज स्थापित हो जो समुदाय आधारित बीज प्रणाली से संभव है।

प्रख्यात गाँधीवादी तथा सर्वोदय आंदोलन से जुड़े समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष श्री सवाई सिंह जी ने भी इस यात्रा में अपनी भागीदारी दर्ज की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज़ादी के 75 वर्ष गाँधी के स्वराज की कल्पना कहीं खो गयी है। बाद भी गरीब की झोंपड़ी में अनाज नहीं पहुंचा, यह एक चिंता तथा चिन्तन दोनों का विषय है। सरकार से हमारा आग्रह है कि जनजातीय जीवनशैली को कोई नुकसान नहीं पहुंचे ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।

पदयात्रा के चित्तौड़गढ़ पहुँचने पर नेहरू गार्डन में प्रयास संस्था तथा वरिष्ठ नागरिक मंच के पदाधिकारियों ने पदयात्रियों का स्वागत किया। प्रयास संस्था के सलाहकार डॉ नरेंद्र गुप्ता ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि निर्णय की व्यवस्था जब तक जयपुर और दिल्ली में केंद्रित है तब तक बुनियादी समस्याओं का समाधान मुश्किल है। गाँधी जी की स्वराज की कल्पना यही थी कि गांव पाने स्तर पर आत्मनिर्भर बने -छोटी बड़ी समस्या का समाधान वहीं पर हो और किसी को आगे जाने की ज़रुरत नहीं पड़े।

वरिष्ठ नागरिक मंच के श्री सत्यनारायण जी ने पद यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज़ादी के 75 वर्ष के बाद भी समुदाय को अपनी बात कहने के लिए इतनी लम्बी पदयात्रा करनी पड़ रही है। यदि सरकारों ने गाँधी के स्वराज सिद्धांतों को अपनाया होता तो आज ये स्थितियां उत्पन्न नहीं होती।

डॉ भंवर सिंह जी तंवर ने यात्रा के लिए शुभकामनायें देते हुए कहा कि जब तक गांव प्रगति नहीं करता तब तक देश की तरक्की नहीं हो सकती। 1925 में गाँधी जी ने स्वराज की रह में अड़चन 7 पाप बताये थे। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इन 7 पापों को ख़त्म कर दे तो ग्राम स्वराज का सपना साकार हो सकता है।
जन मानस में एक नयी सोच का निर्माण करते हुएचित्तौडग़ढ़ से भीलवाड़ा होते हुए जयपुर जा रही यात्रा आने वाले दिनों में एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में अहम् भूमिका निभाएगी।

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Aaqib Ahmad

IT Support & Development

Aaqib holds a Master of Computer Applications (MCA) from Jawaharlal Nehru Technological University, Hyderabad. With experience in data analysis, website development, and market research, he transitioned to the development sector seeking purpose-driven work and new challenges.
Working at Vaagdhara has transformed not just my career but my outlook on life. I came here as an IT professional, but I have grown into someone who understands the pulse of rural and tribal communities.