दिनांक: 3 जून 2025
गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन के द्वारा वाग्धारा संस्था के सहयोग से 4 से 7 जून 2025 के बीच आयोजित किया जाने वाला 'बीज उत्सव 2025' आदिवासी समुदायों की पारंपरिक कृषि पद्धतियों, बीजों की जैव विविधता और जलवायु अनुकूल खेती को उजागर करने की एक सामूहिक पहल है। इस वर्ष की थीम है: “बीज बचाओ, पर्यावरण बचाओ”, जो पर्यावरणीय संकटों के समाधान हेतु बीजों की भूमिका को रेखांकित करती है।
खेती में बढ़ते रासायनिक प्रभाव, जलवायु परिवर्तन और बाजार आधारित बीजों की निर्भरता ने आदिवासी क्षेत्रों की परंपरागत कृषि व्यवस्था को गहरा नुकसान पहुँचाया है। इन स्थितियों में एक नई पहल और जन- जागरूकता की आवश्यकता थी, जिसमें पारंपरिक बीज ही आत्मनिर्भर खेती और पोषण संप्रभुता का आधार बन सके।
इसी सोच के साथ राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़; मध्यप्रदेश के झाबुआ और रतलाम; तथा गुजरात के दाहोद जिलों में 4 से 7 जून 2025 के दौरान ग्राम पंचायत स्तर पर 60 बीज उत्सव आयोजित किए जाएंगे। यह उत्सव न केवल पारंपरिक बीजों के संरक्षण और प्रचार का माध्यम बनेगा, बल्कि इसमें बीजों के संरक्षण को लेकर स्थानीय समुदाय की निर्णायक भूमिका भी उजागर होगी।
इस आयोजन में 50 से अधिक किस्मों के पारंपरिक बीजों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी जिसमें अनाज, दलहन, सब्ज़ियाँ, फल और अन्य फसलें शामिल होंगी। जो किसान बीज का संरक्षण करते हुए आ रहे है उन किसानों को 'बीज मित्र' और 'बीज माता' जैसे खिताबों से सम्मानित किया जाएगा, ताकि यह किसान अन्य समुदाय के लिए एक उदाहरण बन सके और वह भी इस दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित हो । उत्सव के दौरान संवाद सत्र, बीज संग्रहण तकनीकों का प्रदर्शन, रचनात्मक गतिविधियाँ और पर्यावरणीय संकल्प जैसी कई गतिविधियाँ आयोजित की जाएंगी।
संस्था सचिव जयेश जोशी ने बताया कि बीज उत्सव 2025 एक ऐसा अवसर है जहां खेती और संस्कृति एक साथ जुड़कर समुदाय को स्वावलंबन, पोषण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में प्रेरित करेंगे। यह आयोजन आदिवासी जीवनशैली और जलवायु न्याय के लिए एक सशक्त मंच बनकर उभरेगा।
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