Background Information- For the tribal communities living in remote, rural settings, availing even minor services offered by their Gram-Panchayats can be a long, tedious process, providing little relief and support for the vulnerable communities. This particular tribal community has been living in Pratapgarh district for many years. Their main livelihood has come from farming, livestock and wages, which, in the past, had allowed them to take care of their families. Nowadays, the local communities are continuously struggling to generate an adequate livelihood, which is why many schemes have been prepared & launched by the government for their development, such as the Right to Education, MGNREGA & other public welfare schemes. These initiatives have given some relief to the community, but due to a lack of publicity & public awareness for the schemes, many families are still not benefiting from them.
Case with Details - Ramesh s/o Shankar, aged 40 years, lived in the village Upala Ghantala (tehsil- Pipalkhunt, district- Pratapgarh). He used to live there with his wife Meera and their 5 children, when one day, he fell into a depression and ran away from home, never to return. As is common in such a situation, his wife Meera left her children and went to live with another man (‘Nata Pratha’ is a tradition amongst the Bhil Adivasis, where a man can live together with a previously married woman if he pays money to her previous husband or her parents, and she abandons her children). In effect, all 5 of their children became orphans, and they were not able to benefit from any kind of public welfare scheme. Meera left her children to live at their maternal grandfather, Kishan s/o Badiya’s house in Dharana village of the Pipalkhunt tehsil. The oldest, Payal, was 12 years old at the time, followed by Etu- 10 years old, Kapil- 8 years old, Ramlal- 5 years old, and Laxman, who was only 4 years old. None of them were connected with schools or Anganwadi centres, and two of them were seriously ill.
Effort Made by Vaagdhara- On 17th February 2023, When the members of the Village development and child rights committee and Vaagdhara heard of this, they went to the maternal grandparents' house to meet the children & collect all kinds of information related to them, in order to inform the higher officials of the concerned department. After that, the Pipalkhoont Sub-Divisional Officer went to Kishan's house and forwarded the complete report. The government officials got the two severely malnourished boys and girls admitted to Pipalkhunt government hospital for treatment and instructed government workers to help the children access their rightful benefits under various public welfare schemes.
How the Changes Start- The Sub-Divisional Officer of Pipalkhunt asked Vaagdhara for their help. First, the girl Payal was admitted to a government school, two children were connected with a Maa Bari centre, and the two youngest children were brought to an Anganwadi centre. Nutrition kits were provided to the two malnourished children and a letter was issued to the Social Justice Empowerment Department of Banswara to link the children with the scheme of guardianship, making a request for a special category. The children’s grandparents had not been receiving a pension, so an application was made for this. According to Dhanraj Kumawat from Vaagdhara, a lack of awareness about the schemes meant the family was not able to avail of them, and the government was not aware of their problems. According to Vaagdhara, all children should be able to access mainstream schemes and services like schools and Anganwadi. The action was also taken at the state level to add this to the government’s Palanhar scheme.
Changes coming afterwards- Working together with Vaagdhara’s team, the promptness with which the responsible administration cooperated with the family and connected all five children to the relevant government scheme is truly commendable. The appreciable work of Premlata and other Vaagdhara team members greatly benefitted said family.
वाग्धारा संस्था के प्रयासों से पांच अनाथ नाबालिग बालक - बालिकाओं को मिला पुनर्वास एवं अन्य योजनाओं का लाभ
जानकारी : दूरस्थ जनजातिय ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों को जब ग्राम पंचायत स्तर के छोटे से छोटे कार्या के लिए अनके विभागों की लम्बी और थकाने वाली दौड लगाने से निज़ात मिल जायें, तो यह उस क्षेत्र के निवासियों के लिए सबसे ज्यादा सुकून और राहत देने वाला कार्य होता है। जनजातिय बाहुल्य क्षेत्र प्रतापगढ़ जिले में जनजातिय समुदाय वर्षा से रहता आया है, जिनकी आजीविका का साधन खेती, पशु-पालन व मजदूरी कर अपने परिवारों का पालन- पोषण करते रहे है I स्थानीय समुदाय आजीविका के संसाधन होने के बावजूद निरंतर संघर्ष करते हुए जीवन यापन कर रहे है , सरकार द्वारा ग्रामीण जनजातिय समुदायों के विकास की रूपरेखा तैयार की गयी और सबसे बड़ी जो रुपरेखा बनी वह नि:शुल्क शिक्षा, मनरेगा कानून, एवं अन्य जनकल्याणकारी योजनाएं, जिससे कुछ हद तक राहत मिल सके, लेकिन योजनाओं के प्रचार प्रसार / जन-जागरुकता के अभाव में कई परिवार आज भी वंचित है।
स्थिति : जिला प्रतापगढ़, तहसील-पीपलखूंट, गाँव-उपला घंटाला में रमेश पुत्र शंकर, उम्र 40 वर्ष निवासरत है, रमेश कि शादी ग्राम पंचायत धारणा करवाई गई थी, रमेश के परिवार में पत्नी मीरा व 5 नाबालिग बालक-बालिकाएं है। लेकिन ऊपर वाले को कुछ अलग ही मंजूर था और रमेश मानसिक विमंदित हो जाने के कारण कही चला गया ओर लोटकर वापिस नही आया, इधर पत्नी मीरा अपने बच्चो को छोड़कर नाते चली गयीI बच्चे अनाथ हो गये जिन्हें किसी भी प्रकार की सरकार द्वारा संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
मां का भी दिल नहीं पसीजा आखिर संभाले तो कौन संभाले फिर यह पांचो बालक बालिकाएं अपने नाना नानी के घर प्रतापगढ़ जिले कि तहसील पीपलखूंट, गांव धारणा में अपने नाना किशन पिता बदिया के यहां आकर रहने लगे। जिसमें पायल उम्र 12 वर्ष, ईतु 10 वर्ष, कपील 8 वर्ष, रामलाल 6 वर्ष एवं लक्ष्मण 5 वर्ष के थे, इन पांचो बालक-बालिकाओं का ना तो विद्यालय में जुड़ाव था और दो बालक गम्भीर रूप से बिमार भी थे।
स्थितियों को सुधारने के लिए किये प्रयास : स्वराज संगठन एवं वाग्धारा के सदस्यों को जानकारी मिलने पर बच्चो के पास घर पहुंचे एवं समस्त प्रकार की जानकारी एकत्रित कर उच्चाधिकारियों को अवगत करवाने पर पीपलखुट उपखंड अधिकारी द्वारा उक्त घर पर जाकर समस्त रिपोर्ट आगे प्रेषित की एवं महोदय के द्वारा ही अति-कुपोषित दो बालक-बालिकाओं को अपने ही राजकीय वाहन में ले जाकर पीपलखूंट के सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया एवं समस्त अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि पीड़ित परिवार को सरकार की हर जन-कल्याणकारी योजना का लाभ मिलना चाहिए।
बदलाव कैसे शुरू हुआ एवं किसकी मदद मिली- उपखंड अधिकारी पीपलखुट द्वारा वाग्धारा के सदस्यों को भी कहा आप भी साथ में रहकर मदद करें तो सबसे पहले बालिका पायल को राजकीय विद्यालय में प्रवेश करवाया गया। दो बालिका को मां बाड़ी केंद्र में अध्ययन के लिए भर्ती करवाया एवं दो बालकों को आंगनवाड़ी केंद्र से जुड़ाव करवाया गया। कुपोषित की श्रेणी में आने वाले दोनों बालकों को न्यूट्रेशन किट उपलब्ध करवाया। पांचो बालक- बालिकाओं के पालनहार की सहायता करने के लिए बांसवाड़ा के सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग से पालनहार की योजना से जुड़ाव के लिए पत्र जारी कर विशेष श्रेणी हेतु निवेदन किया गया। दादा- दादी को पेंशन नहीं मिल रही थी, उनकी भी पेंशन शुरू करवाने के लिए आवेदन कराया गया। संस्था के धनराज कुमावत ने बताया कि उक्त परिवार को योजनाओं की जानकारी का अभाव एवं अधिकारियों तक उक्त परिवार की परेशानियों का मालूम नहीं होने के कारण संस्था के प्रयास रंग लाए एवं पांचो बालकों का विद्यालय से जुड़ा हुआ है दो नाबालिग अति कुपोषण श्रेणी में आने वाले बालकों को न्युटेशन किट उपलब्ध करवाया गया है एवं पालनहार के लिए जयपुर स्तर पर कार्यवाही की गई।
बदलाव से क्या परिवर्तन आये - संस्था के कर्मठ कार्यकर्ताओं के साथ ही प्रशासन ने जिस प्रकार से तत्परता दिखाते हुए उक्त परिवार का सहयोग करते हुए लाभान्वित किया है। प्रयासों में प्रेमलता एवं अन्य संस्था के कार्मिकों का सराहनीय सहयोग के साथ ही उक्त परिवार को लाभान्वित किया गया।