जिस धरती से विनोबा भावे ने ग्राम स्वराज की बात की और जहाँ से गोविन्द गुरु ने स्वराज की लड़ाई लड़ी वहीँ से शुरू हुआ वाग्धारा का प्रयास एक नयी इबारत लिखेगा - महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, जल संसाधन मंत्री, राजस्थान सरकार।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विकास के सही उदाहरण स्वराज तथा स्वराज द्वारा समाधान को समाज और समुदाय के बीच में प्रतिस्थापित करने तथा समुदाय के आग्रह को व्यापक स्तर तक ले जाने के उद्देश्य से चल रही ‘स्वराज सन्देश-संवाद पदयात्रा' में भागीदारी निभाते हुए आज राजस्थान सरकार के जल संसाधन मंत्री श्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय भी अपने आप को रोक नहीं पाए।
चित्तौडग़ढ़ के पाचर चौराहे से गुज़र रही स्वराज सन्देश संवाद यात्रा में शामिल होते हुए श्री मालवीय ने कहा कि जब-जब इस प्रकार की यात्रायें होती हैं तब-तब परिवर्तन देखने को मिलते हैं। उन्होंने विनोबा भावे का ज़िक्र करते हुए कहा कि उनकी स्वराज यात्रा के दौरान स्वराज आंदोलन में वागड़ के 31 गांव ग्रामधनी बने जहाँ पर आज भी स्वराज की परम्पराओं का पालन होता है। उनका उद्देश्य भी यही था कि गांव में किसान परंपरागत खेती करे, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, गांव का अनाज गांव में एकत्र हो तथा वहीँ के ग्रामवासिओं के काम आये। वाग्धारा की स्वराज सन्देश संवाद यात्रा का भी यही उद्देश्य है कि परंपरागत खेती को बढ़ावा मिले, ग्राम स्तर पर बच्चों को सही शिक्षा के साथ साथ उनके अधिकार सुरक्षित रहें और खाद्य का स्वराज स्थापित हो।
महात्मा गाँधी के सम्बन्ध में मालवीय ने कहा कि निःस्वार्थ भाव से एक धोती, लाठी और लंगोट में देश की आज़ादी के लिए निकल पड़े और उनके नेतृत्व में देश आज़ाद हुआ। उन्होंने आगे कहा कि अपने जीवन के निजी सुखों को त्याग कर समाज का कल्याण करने वाले लोग विरले ही होते हैं। मालवीय ने इन दोनों महान विभूतियों का नाम इस कर लिया क्यों कि यह यात्रा 11 सितम्बर को विनोबा भावे की जयंती पर बाँसवाड़ा से शुरू हुई थी और गाँधी जयंती पर 2 अक्टूबर को जयपुर में स्वराज सन्देश -आग्रह सम्मलेन के साथ इसका समागम होगा।
मालवीय ने आगे कहा कि विज्ञान के द्वारा जितनी प्रगति हुई है उतना ही नुक्सान भी हुआ है। बढ़ती जनसँख्या के लिए जहाँ एक ओर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करना हमारा दायित्व है वहीं बढ़ती बीमारियाँ भी एक चिंता का विषय है।
अगर हमें खुशहाल रहना है तो तो हमें परंपरागत पद्धतियों पर तो जाना ही होगा। कोरोना के दौरान, शहर में कूलर और ए सी में रहने वाले तथा आर.ओ का पानी पीने वाले ज़्यादा बीमार पड़े परन्तु गांव में परम्परागत पोषण युक्त देसी भोजन खा कर तथा हैंडपम्प का पानी पी कर भी लोग इस महामारी से बचे रहे।
धीरे धीरे मुल्क में परिवर्तन आ रहा है, लोग एक बार फिर से शहर छोड़ कर गांव की ओर आने लगे हैं। हाइब्रिड खाने वाले पुनः पुराना अनाज ढूंढ रहे हैं।
यात्रा की सफ़लता के लिए सभी पदयात्रियों को तथा वाग्धारा संस्था तथा संस्था के सचिव जयेश जोशी को शुभकामनायें देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी पदयात्राएं सरकार को चिंतित करती हैं। आपके इस उद्देश्य को सफलता मिलेगी और सरकार को आपकी बात सुननी पड़ेगी। इस यात्रा से किसानों में जागृति पैदा हो, सच्ची खेती की बातें उनके मन में जागें, सूखी धरती हरी-भरी हो; किसान सम्पन्न हों, बच्चे पढ़ें और सभी लोग सुखमय जीवन जीएं ऐसी मेरी कामना है। आपका ये जन आंदोलन सम्पूर्ण राजस्थान में चेतना और जागृति का कारण बने तथा आने वाले समय में आप गर्व से कह सकें कि हमारी इस पदयात्रा से समाज में परिवर्तन आया।
वाग्धारा के सचिव जयेश जोशी ने उपरना ओढ़ा कर मालवीय जी का स्वागत सत्कार किया। उन्होंने मंत्री जी से इस यात्रा में शामिल होने के लिए उनका धन्यवाद देते हुए कहा कि उनके आने से पदयात्रियों में एक नयी ऊर्जा व जोश का संचार हुआ है। श्री जोशी ने कहा कि हमारे स्वराज के अनुभव चाहे वे सच्ची खेती, के हों या मानव विकास और समुदाय की भागीदारी के हों बहुत अच्छे रहे हैं। हमारी इच्छा है कि किसान की थाली में जो भोजन होता है वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS ) का हिस्सा बने। बच्चों की शिक्षा के साथ उनके अधिकार भी सुरक्षित रहें। ग्रामसभा में ग्रामवासियों की पूर्ण व सशक्त व परिणामपरक भागीदारी हो।
इन्ही को ले कर हम परंपरागत कृषि, बाल अधिकार की बातों को ले कर सरकार से आग्रह करते रहे हैं और सच्चे स्वराजी की तरह आगे भी करते रहेंगे। इससे पहले वाग्धारा के बाल अधिकार तथा सुरक्षा विशेषज्ञ माजिद खान ने अपने उद्बोधन से मालवीय जी का स्वागत किया। संस्था के ही परमेश पाटीदार ने मंत्री जी को धन्यवाद ज्ञापित किया। मान सिंह जी गरासीया और प्रभुलाल जी ने अब तक का यात्रा वृतांत बताते हुए सगवाडिया में हुई सभा में समुदाय की सम्पूर्ण भागीदारी के बारे में जानकारी दी। 200 पदयात्रियों के साथ चल रही यह पदयात्रा कल चित्तौड़गढ़ से होते हुई भीलवाड़ा के लिए प्रस्थान करेगी।
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