"राज हमारा - काज हमारा
ग्राम सभा में अधिकार हमारा"
मानव का मानव के साथ और मानव का प्रकृति के साथ खोये हुए संवाद को पुनर्स्थापित करने हेतु, जल, जंगल, ज़मीन, पशु, बीज, खाद्य, शिक्षा, पोषण व सांस्कृतिक स्वराज जैसे अहम् विषयों पर गहन चर्चा कर एवं स्वराज के संभावित प्रारूप तलाशने तथा विभिन्न सम्बंधित मुद्दों के संभावित समाधान को जन समुदाय के समक्ष उजागर करने के उद्देश्य से बांसवाड़ा अंचल के वंचित समुदाय की “स्वराज संदेश-संवाद पदयात्रा" 11 सितम्बर को जनजातिय स्वराज केन्द्र, वाग्धारा परिसर कूपड़ा से रवाना हो कर आज मेवाड़ अंचल के ग्राम सगवड़िया (चित्तौड़गढ़) पहुँची।
आदिवासी जीवनशैली पर आधारित स्वराज पद्धतियों और विचारों के संदेश को अन्य क्षेत्रों तक पहुँचाने, सरकार एवं अन्य हितधारकों के साथ जुड़ाव स्थापित करते हुए सामूहिक ज्ञान को एक छत के नीचे लाकर एक दूसरे की स्वराज आधारित पद्धतियों को सीखने एवं व्यवहार में लाने हेतु विचारों का आदान-प्रदान करते हुए यह यात्रा 1 अक्टूबर को जयपुर पहुँचेगी जहाँ 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के पावन अवसर पर राज्य स्तरीय कार्यक्रम 'स्वराज सन्देश-आग्रह सम्मलेन' के साथ इसका समागम होगा।
वाग्धारा संस्था संस्था विगत कई वर्षों से वागड़ के बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा डूंगरपुर तथा मध्य प्रदेश के बाजना और गुजरात के दाहोद और जालोद ब्लॉक में जनजातीय समुदाय के साथ आदिवासी सम्प्रभुता को पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यरत है। संस्था के तत्वावधान में उसके सहयोग से समुदाय ने अपनी परंपरागत प्रणालियों को पुनर्जीवित कर अपने खोये हुए स्वराज को एक बार फिर से पाने में सफ़लता पायी है।
वाग्धारा के सचिव जयेश जोशी ने बताया कि स्वराज को सही मायने में जीते हुए आदिवासी व कृषक समुदाय ने सदियों से आज तक प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व संवर्द्धन किया है तथा जीवन मूल्यों को समाज के लिए जीवित रखा है। इन्हीं सच्ची और अच्छी पद्धतियों को आगे ले जाकर अन्य क्षेत्रों के समुदाय तक पहुँचाने की आवश्यकता महसूस की गयी। समुदाय की प्रमाणित परम्परागत कृषि पद्धतियों को उनके लाभों के साथ अन्य समुदायों के एवं अन्य समुदायों की प्रचलित पद्धतियों को सीखने के उद्देश्य से यात्रा जयपुर तक का सफर करेगी।
मोबाइल जैसे आधुनिक साधनों ने परिवार में ही संवादहीनता पैदा कर दी है, और ये संवादहीनता की स्थितियाँ हर जगह बढ़ती जा रही हैं। मूल रूप से स्वराज के संदेशों को, जिन्हें हमने बहुत पीछे छोड़ दिया है उन्हें फिर से आगे लाने की ज़रुरत है। आदिवासी सम्प्रभुता और बीज स्वराज का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि धरती का पहला बीज मूल रूप से आदिवासी ही है।
स्वराज विशेषज्ञ परमेश पाटीदार ने कहा कि यह यात्रा पंचायती राज संस्थाओं में स्वराज का दायरा बढ़ने में सहायक होगी। ग्राम पंचायत के निर्णय ग्राम सभा के अनुसार होने से समुदाय को अपने स्थान पर अपने अधिकार प्राप्त होंगे। यह यात्रा किसी व्यक्ति या समाज की नहीं है। ये यात्रा हर उस बच्चे, महिला, किसान, छोटे कारोबारी की है जी स्वराज के साथ जुड़ाव महसूस करता है, हर वो व्यक्ति जो ये सोचता है कि उसे ऐसा स्वराज मिले कि वह अपने परिवार को खुशियाँ दे सके। हर बच्चे को प्रारंभिक स्तर पर सही शिक्षा मिले जिससे वह अपने जीवन को अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप जी सके।
यात्रा में कृषि एवं आहार विशेषज्ञ श्री पी एल पटेल ने कहा कि आधुनिक कृषि नीतियों के कारण किसान पूर्णतया बाजार पर निर्भर हो गया है और पारम्परिक कृषि को वह भूल सा गया है। अधिक पैदावार की आवश्यकता के चलते वह रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों से खेतों को ख़राब कर रहा है। इन सबके चलते मानव की सेहत से जो खिलवाड़ हो रहा है वह अत्यन्त चिंताजनक है। सच्ची खेती की अवधारणा के अन्तर्गत घर का बीज घर में ; गांव का बीज गांव में ; पंचायत का बीज पंचायत में सहेजने से ही कृषि स्वराज को प्राप्त किया जा सकता है। “वर्षा आने पर बीज वही किसान बो सकता जिसके पास अपना खुद का बीज होगा - इसे केवल कृषि स्वराज के द्वारा ही संभव बनाया जा सकता है”
स्थानीय कृषक मान सिंह निनामा ने कोविड महामारी को याद करते हुए बताया कि जहाँ-जहाँ समुदाय की परम्पराएँ जीवित हैं वहाँ -वहाँ समुदाय अपनी जीवन शैली को अपने विशिष्ठ अंदाज़ में जीता हुआ अपना जीवन सुख पूर्वक गुज़ार रहा है। बाज़ारोन्मुख नीतियों को दरकिनार कर यह समुदाय अपना बीज सहेज कर, अपने खेत का पानी खेत में बचा कर, पशुधन की सहायता से सच्ची खेती कृषि के सरोकार निभा रहा है। कोविड महामारी के दौरान इस समुदाय ने अपने आप को अपनी इन्हीं परंपरागत पद्धतियों को अमल में ला कर अपने आप को इस महामारी से बचाये रखा। स्वयं की आवश्यकताओं को स्वयं के स्तर पर पूरा करने से लॉकडाउन जैसी स्थितियों से आसानी से पार पा लिया गया।
समुदाय अपना यही आग्रह ले कर जयपुर तक जा रहा है कि समुदाय से जुड़ी सभी नीतियाँ जाहे वह शिक्षा को ले कर हो, खेती या जल, जंगल अथवा जमीन से सम्बंधित हो, वे सब स्थानीय मांग और स्थितियों के अनुरूप बनाई जानी चाहिए। हमारे खेतों में और किसानों में वो क्षमता है कि वह अपने घर तथा गांव के लिए आवश्यक भोजन व पोषण जुटा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें कोई नयी अथवा व्यपारोन्मुख प्रणाली अपनाने के लिए विवश न किया जाये।
200 लोगों के साथ चल रही इस पदयात्रा का मार्ग में जगह-जगह समुदाय द्वारा स्वागत रहा है। आज कारूण्डा पहुँचने पर नीलू चौधरी के परिवार ने पदयात्रियों का पुष्प माला पहना कर स्वागत किया गया। यात्रा की अगुवाई कर रहे वागड़ के गाँधी के नाम से ख्याति प्राप्त जयेश जोशी का तिलक लगा कर और साफा बाँध कर स्वागत किया।
“जल, जंगल, मिटटी, पशुधन और बीज प्रकृति की देन हैं - इन्हें किसी मशीन से नहीं बनाया जा सकता”
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